भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिन्तक के लिये अद्भुत / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:29, 2 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=रेत पर चमकती मणियाँ / गुल…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चिन्तक के लिये अद्भुत
और भावुक के लिये करुण,
अंत में यही दो अनुभूतियाँ टिक पायी हैं;
देव के इस काव्य में
बस यही दो भाव स्थायी हैं.
छोटे-से-छोटे परमाणु का घूर्णन हो
या बड़े-से बड़े तारे की परिक्रमा,
प्रकृति की प्रत्येक भंगिमा हमें विस्मय से अभिभूत कर देती है
और चलचित्रों-सी क्षण-क्षण बदलती
जीवन की वास्तविकता
हमारे मन को करूणा से भर देती है.
यों तो हमारी चेतना
सदा किसी-न-किसी भाव-तरंग में उफनाती रहती है,
वह कितनी भी उमड़े और लहराये
इन्हीं दो किनारों के बीच बहती है.