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"चील / तुलसी रमण" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=ढलान पर आदमी / तुलसी रमण
 
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आसमान में उड़ती  
 
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चील की झोली में
 
चील की झोली में

02:19, 14 जनवरी 2009 का अवतरण

<porm> आसमान में उड़ती चील की झोली में अनगिनत मुट्ठियां रेत है जमीन पर फले कबूतरों के लिए जिस छोर से भी फड़फड़ाते हैं पंख एक मुट्ठी रेत

  फेंक देती है चील 

और व्यस्त हो जाते हैं कबूतर दाना–दाना खोजने में

चील की इस चाल पर जब सिर उठाते हैं कबूतर चील छेड़ देती है मल्हार सावन के अंधों के लिए ज्यों – ज्यों बदलते हैं मौसम चील बदल देती है राग खाली पेट कहीं शुरू होता है तांडव कहीं नंगे तन भरत – नाट्यम् और कहीं रणबांकुरे करने लगते अभ्यास पहाड़ से समुद्र तक फैली जमीन पर कबूतरों की गुटरगूं और चील का राग है बहुत कम दिखाई पड़ते हैं डफलियां लिए वे कुछ हाथ जिनका अपना – अपना राग है </poem>