भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चैन न आया दिल को घड़ी भर, हरदम वार पे वार हुए / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चैन न आया दिल को घड़ी भर, हरदम वार पे वार हुए
आपने प्यार का खेल किया हो, हम तो बहुत बेज़ार हुए

तीर तो थे तरकश में हज़ारों, चल भी गए कुछ चल न सके
टूट के उन क़दमों पे गिरे कुछ, कुछ हैं दिलों के पार हुए

हम न रहे तो कौन भला ये शोख़ अदायें देखेगा!
बाग़ की सब रंगत है हमींसे फूल भले ही हज़ार हुए

एक हमींको क्यों दुनिया ने दीवाने का नाम दिया
जब कि हमारी हर धड़कन में आप भी हिस्सेदार हुए!

अपनी पँखुरियों को छितराकर, आज गुलाब ये कहता था,
'ख़ूब जिन्हें खिलना हो खिलें अब, हम तो हवा पे सवार हुए'