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"चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

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चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया
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पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया
  
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जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए
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ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया
  
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सूखा पुराना ज़ख्म नए को जगह मिली
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया <br><br>
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स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया  
  
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आतीं न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ
ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया <br><br>
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दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया  
  
सूखा पुराना ज़ख्म नए को जगह मिली<br>
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आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया <br><br>
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नज़रों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया  
  
आतीं न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ<br>
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अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर
दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया <br><br>
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यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया
  
आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया<br>
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ग़म मिलते हैं तो और निखरती है शायरी
नज़रों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया <br><br>
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यह बात है तो सारे ज़माने का शुक्रिया  
  
अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर<br>
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अब मुझको आ गए हैं मनाने के सब हुनर
यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया<br><br>
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यूँ मुझसे `कुँअर' रूठ के जाने का शुक्रिया
 
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अब मुझको आ गए हैं मनाने के सब हुनर<br>
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20:30, 30 जून 2013 के समय का अवतरण

चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया

जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए
ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया

सूखा पुराना ज़ख्म नए को जगह मिली
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया

आतीं न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ
दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया

आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया
नज़रों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया

अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर
यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया

ग़म मिलते हैं तो और निखरती है शायरी
यह बात है तो सारे ज़माने का शुक्रिया

अब मुझको आ गए हैं मनाने के सब हुनर
यूँ मुझसे `कुँअर' रूठ के जाने का शुक्रिया