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"छहरि रही है कं, लहरि रही है कं / राय कृष्णदास" के अवतरणों में अंतर

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23:18, 7 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

छहरि रही है कं, लहरि रही है कं,
रपटि परै त्यों कं सरपट धावै है।
उझकै कं, त्यों कं झिझकि ठिठकि जात,
स्यामता बिलोकि रोरी-मूंठनि चलावै है॥

कौंलन जगाइ, नीके रंग में डुबाइ, भौंर-
भीर को गवाइ, कितो रस बरसावै है।
केसर की माठ भरे, कर पिचकारी धरे,
पूरब-सुबाला होरी भोर ही मचावै है॥