भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"छापक पेड़ छिउलिया,त पतवन धन बन हो" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=भोजपुरी }...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKLokRachna
 
{{KKLokRachna
 
|रचनाकार=अज्ञात
 
|रचनाकार=अज्ञात
}}
+
}}{{KKCatBhojpuriRachna}}
 
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
 
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
 
|भाषा=भोजपुरी
 
|भाषा=भोजपुरी

12:29, 21 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

छापक पेड़ छिउलिया त पतवन धन बन हो
ताहि तर ठाढ़ हरिनवा त हरिनी से पूछेले हो
चरतहीं चरत हरिनवा त हरिनी से पूछेले हो
हरिनी! की तोर चरहा झुरान कि पानी बिनु मुरझेलू हो
नाहीं मोर चरहा झुरान ना पानी बिनु मुरझींले हो
हरिना आजु राजा के छठिहार तोहे मारि डरिहें हो
मचियहीं बइठली कोसिला रानी, हरिनी अरज करे हो
रानी! मसुआ तो सींझेला रसोइया खलरिया हमें दिहितू न हो
पेड़वा से टांगबी खलरिया त मनवा समुझाइबि हो
रानी हिरि-फिरि देखबि खलरिया जनुक हरिना जिअतहिं हो
जाहू! हरिनी घर अपना खलरिया ना देइबि हो
हरिनी खलरी के खंझड़ी मढ़ाइबि राम मोरा खेलिहें नू हो
जब-जब बाजेला खंजड़िया सबद सुनि अहंकेली हो
हरिनी ठाढ़ि ढेकुलिया के नीचे हरिन बिसूरेली हो