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छुपा है चाँद / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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6
खाए हैं घाव
चलो उनको धो लें
दु:ख के पन्ने खोलें
करता है जी
गले से लगकर
जीभर हम रो लें।
7
हज़ारों मिले
पथ में मीत हमें
चुपके से खिसके
तुम-सा न था
साथ निभाने वाला
लौटके आने वाला ।
8
राह हमारी
ये रोकेंगे सागर
फिर भी मिलना है;
तेरे दिल की
खुशबू बनने को
फूलों -सा खिलना है ।
9
पास जो बैठे
वे मीलों दूर रहे
उनसे क्या शिक़वा !
माना हमसे
कोसों दूर हो तुम
फिर भी पास लगे ।
10
ईर्ष्या का चक्र
सिर पर सवार
बही लोहित धार
कुछ न पाया
बैचैनी सदा मिली
सब कुछ गँवाया ।