भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोड़िए छोड़िए यह ढंग पुराना साहिब! / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:53, 20 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरवर आलम राज़ 'सरवर' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छोड़िए छोड़िए ये ढंग पुराना साहिब!
ढूँढिए आप कोई और बहाना साहिब!

खत्म आख़िर हुआ हस्ती का फ़साना साहिब
आप से सीखे कोई साथ निभाना साहिब!

भूल कर ही सही ख़्वाबों में चले आयें आप
हो गया देखे हुए एक ज़माना साहिब!

हमने हाथों की लकीरों में तुम्हें ढूँढा था
वो भी था इश्क़ का क्या एक ज़माना साहिब!

क्यों गए, कैसे गए, ये तो हमें याद नहीं
हाँ मगर याद है वो आप का आना साहिब!

कू-ए-नाकामी-ओ-नौमीदी-ओ-हसरतसंजी
हो गया अब तो यही अपना ठिकाना साहिब!

क़स्रे-उम्मीद, वो हसरत के हसीं ताज महल
हाय! क्या हो गया वो ख़्वाब सुहाना साहिब?

रहम आ जाए है दुश्मन को भी इक दिन लेकिन
तुमने सीखा है कहाँ दिल का दुखाना साहिब?

आते आते ही तो आयेगा हमें सब्र हुज़ूर
खेल ऐसा तो नही दिल का लगाना साहिब!

इसकी बातों में किसी तौर न आना ‘सरवर’
दिल तो दीवाना है, क्या इसका ठिकाना साहिब!