भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जग में आकर इधर उधर देखा / ख़्वाजा मीर दर्द" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ख़्वाजा मीर दर्द }} जग में आकर इधर उधर देखा|<br> तू ही आया न...)
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
  
 
जान से हो गए बदन ख़ाली,<br>
 
जान से हो गए बदन ख़ाली,<br>
जिस तरफ़ तूने आँख भर के देखा|<br><br>
+
जिस तरफ़ तूने आँख भर देखा|<br><br>
  
 
नाला फ़िरयाद आह और ज़ारी,<br>
 
नाला फ़िरयाद आह और ज़ारी,<br>

00:29, 30 दिसम्बर 2008 का अवतरण

जग में आकर इधर उधर देखा|
तू ही आया नज़र जिधर देखा|

जान से हो गए बदन ख़ाली,
जिस तरफ़ तूने आँख भर देखा|

नाला फ़िरयाद आह और ज़ारी,
आप से हो सका सो कर देखा|

उन लबों ने की न मसिहाई,
हम ने सौ-सौ तरह से मर देखा|

ज़ोर आशिक़ मिज़ाज है कोई,
‘दर्द’ को कि़स्सा-ए- मुख्तसर देखा|