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"जबसे किसी से दर्द का रिश्ता नहीं रहा / दरवेश भारती" के अवतरणों में अंतर
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जबसे किसी से दर्द का रिश्ता नहीं रहा | जबसे किसी से दर्द का रिश्ता नहीं रहा | ||
− | जीना हमारा तबसे | + | जीना हमारा तबसे ही जीना नहीं रहा |
तेरे ख़यालो-ख़्वाब ही रहते हैं आस-पास | तेरे ख़यालो-ख़्वाब ही रहते हैं आस-पास | ||
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अपनों कोअपनों पर ही भरोसा नहीं रहा | अपनों कोअपनों पर ही भरोसा नहीं रहा | ||
− | + | नफ़रत का ज़ह्र फैला है, लेकिन किसी में आज | |
मिल-बैठ सोचने का भी जज़्बा नहीं रहा | मिल-बैठ सोचने का भी जज़्बा नहीं रहा | ||
− | दारोमदारे-ज़िन्दगी | + | दारोमदारे-ज़िन्दगी जिसपर था, वो भी तो |
− | जैसा समझते थे उसे, | + | जैसा समझते थे उसे, वैसा नहीं रहा |
ये नस्ले-नौ है इतनी मुहज़्ज़ब कि इसमें आज | ये नस्ले-नौ है इतनी मुहज़्ज़ब कि इसमें आज | ||
− | 'दरवेश' गुफ़्तगू का | + | 'दरवेश' गुफ़्तगू का सलीक़ा नहीं रहा |
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11:45, 18 अप्रैल 2019 के समय का अवतरण
जबसे किसी से दर्द का रिश्ता नहीं रहा
जीना हमारा तबसे ही जीना नहीं रहा
तेरे ख़यालो-ख़्वाब ही रहते हैं आस-पास
तनहाई में भी मैं कभी तनहा नहीं रहा
आँसू बहे हैं इतने किसी के फ़िराक़ में
आँखों में इक भी वस्ल का सपना नहीं रहा
दरपेश आ रहे हैं वो हालात आजकल
अपनों कोअपनों पर ही भरोसा नहीं रहा
नफ़रत का ज़ह्र फैला है, लेकिन किसी में आज
मिल-बैठ सोचने का भी जज़्बा नहीं रहा
दारोमदारे-ज़िन्दगी जिसपर था, वो भी तो
जैसा समझते थे उसे, वैसा नहीं रहा
ये नस्ले-नौ है इतनी मुहज़्ज़ब कि इसमें आज
'दरवेश' गुफ़्तगू का सलीक़ा नहीं रहा