भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब आप पिए हुए हों, खूब होती है मौज / आन्ना अख़्मातवा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:42, 16 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=आन्ना अख़्मातवा |संग्रह= }} Category:रूसी भाषा <Poem> …)
|
तयशुदा समय से थोड़ा पहले
आ पहुँचा है पतझड़
पीले परचमों के साथ शोभायमान हैं एल्म के पेड़.
वंचनाओं की जमीन पर बिखर गए हैं हम
पछतावे में उभ-चुभ करते
और तिक्तता से लबरेज।
हमने क्यों ओढ़ रखी है
अजनबियत से भरी जमी हुई मुस्कान?
और शान्तचित्त प्रसन्नता के बदले
चाह रहे हैं बेधक संताप....
मैंने खुद को त्याग नहीं दिया है साथी!
अब मैं हूँ व्यसनी और सौम्य
जानते हो साथी!
जब आप पिए हुए हों, खूब होती है मौज़!
अंग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह