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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= बुलाकी दास बावरा }}[[Category: कविता]]{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>जब शब्द पत्थर से हुए, आवाज आवाज़ कैसे दूँ तुम्हे ?
उम्र ढोने के लिए
कुछ साँस की सौगात ले
सुर्ख सूखी रेत बैठे
चिन्ह से जज्बात जज़्बात ले
मैं जिया हूँ किस तरह ये राज़ कैसे दूँ तुम्हे ?
जब शब्द पत्थर से हुए, आवाज़ कैसे दूँ तुम्हे ?
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