भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जरूरी नहीं.../अवनीश सिंह चौहान

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:29, 20 मार्च 2015 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जरूरी नहीं
जो पढ़ा है तुमने
पढ़ा सकोगे

जिनके घर
बने हुए शीशे के
लगाते पर्दे

तेरी-मेरी है
बस एक कहानी
राजा न रानी

प्रभु के लिए
छप्पन भोग बने
खाये पुजारी

बड़े दिनों से
मन है मिलने का
समय नहीं

उल्लू के पठ्ठे
उल्लू नहीं होंगे तो
भला क्या होंगे

कहने को तो
सफर है सुहाना
थकते जाना

कितने कवि
कविता लिखने से
हुए पागल

पड़ी लकड़ी
जब भी है उठायी
आफ़त आयी

आदेश हुआ
महिला हो मुखिया
कागज़ पर