"जहाँगीरपुरी की औरतें : १ / अनिता भारती" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिता भारती |संग्रह=एक कदम मेरा भ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=अनिता भारती | |रचनाकार=अनिता भारती | ||
− | |संग्रह=एक | + | |संग्रह=एक क़दम मेरा भी... / अनिता भारती |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} |
14:28, 13 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
जहाँगीरपुरी की औरतें
मेहनत की धूप में
तपकर
फीकी हो चुकी अरगनियों पर
झूलती कपड़ों- सी
लचक-लपक-झपक
लम्बे-लम्बे डग भरती
जल्दी-जल्दी
घरों में, दुकानों में, कारखानों में
काम करने के लिए खप जाती हुई
किसी दिन
मुश्किल से मिली छुट्टी में
कभी-कभी अपने नन्हें मुन्नों को
गोद में लादे
छाती से चिपकाये, उंगली थामे
खुशी से गालों में हजारों गुलाब समेटे
ले जाती हैं दिखाने
मैट्रो में लालकिला या कुतुब मीनार
जहाँगीरपुरी की औरतें
रोटी सेंकने के बाद
बुझे चूल्हे सी
मन में अंगार दबाये धधकती
हाथ लगाओ तो जल जाओ
जहाँगीरपुरी की औरतें
बार-बार धुलने से फीकी हुई
गली साड़ी सी
जो बार- बार सिलने पर भी
फट-फट पडे
जहाँगीरपुरी की औरतें
सुबह-सुबह
ताजा सब्जी- सी दमकती
पर शाम होते ही
मुरझायी बासी सब्जी- सी
जिनकी कीमत शाम होते होते
कम हो जाती है
जहाँगीरपुरी की औरतें
सर्दियों की रात में
सुनसान पडी सड़क की तरह
जिसमें चलना न चाहे कोई
पर वे चलती है उन पर
निडर बेखौफ
पार करती है उन्हें
हँसते-हँसते
जिन्दगी के अन्त से बेखबर