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ज़बां लफ्ज़-मुहब्बत है / सुधेश

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ज़बां लफ्ज़े मुहब्बत है
दिलों में पर अदावत है।
न कोई रूठना मनना
यही तुम से शिकायत है।
कि बस रोज़ी कमाते सब
नहीं कोई हिकायत है।
मुहब्बत ही तो जन्नत है
अदावत दिन क़यामत है।
पढ़ो तुम बन्द आँखों से
लिखी दिल पै इबारत है।
ग़रीबों से जो हमदर्दी
यही सच्ची इबादत़ है।
कभी यों ग़ज़ल कह लेता
बड़ी उस की इनायत है।