भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़िंदगी लिखते हुए / एम० के० मधु

Kavita Kosh से
योगेंद्र कृष्णा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:31, 9 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एम० के० मधु |संग्रह=बुतों के शहर में }} <poem> हवा की स…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
हवा की सीढ़ियां चढ़
मिट्टी आकाश को उड़ रही
उफ़नता समुद्र में डूबता सूर्य
कुछ कहता रहा

चांद के मौन पर
जुगनुएं चीख़ती रहीं
स्याह रातें
कुछ अनकही
कहती रहीं

सूरज डूबता रहा
क्षितिज अपने पृष्ठ पर
अनदेखे चित्र
उकेरता रहा
पत्तियों पर
अनसुने बोल
बजते रहे
सांस लय देते रहे
सांस लय लेते रहे
सब बहते रहे
सब डूबते रहे
पर एक ध्वज लहराता रहा
नाव की पतवार पर
ज़िंदगी लिखता रहा
समंदर के झाग पर।