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ज़िन्दगी तेरे साथ से क्या मिला जुज़ तन्हाई के/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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लेखन वर्ष: २००४

ज़िन्दगी तेरे साथ से क्या मिला जुज़ तन्हाई के
हर गाम इक मंज़िल है लोग मिले रुसवाई के

अब भरोसा ही उठ गया दुनिया के लोगों पर से
अहले-जहाँ कब क़ाबिल थे सनम तेरी भलाई के

चाक़ जिगर यूँ फड़का कि तड़प के फट गया
ऐजाज़े-रफ़ूगरी कैसा तागे टुट गये सिलाई के

वो फ़ज़िर के रंग वो शाम का हुस्न अब कहाँ
चंद कुछ निशान थे सो मिट गये तेरी ख़ुदाई के

हिज्र के रंग में सराबोर हैं अब मेरी रातें
काँटों के बिस्तर पे बिताता हूँ अब दिन जुदाई के

करवटें बदल-बदल के मेरी रातें गुज़रती हैं
नसीब नहीं अब मुझे हुस्न तेरी अँगड़ाई के

जुज़: अतिरिक्त । ऐजाज़: जादू । फ़ज़िर: भोर । हिज्र: विरह