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"ज़िन्दगी दर्द का दाह है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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01:57, 7 जुलाई 2011 का अवतरण
ज़िन्दगी दर्द का दाह है
प्यार छाहोंभरी राह है
जलते हैं आँसुओं के दिए
उम्र अब आह ही आह है
मिल ही जायेंगे फिर हम कहीं
राह भी है जहाँ चाह है
किसने अपनी लटें खोल दीं
चांदनी पड़ गयी स्याह है!
छेद यों बाँसुरी में कई
कुछ तो सुर का भी निर्वाह है
जब वही बीच से उठ गए
अब न गाने का उत्साह है
हमने होठों के चूमें गुलाब
किसको काँटों की परवाह है!