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ज़्यादा नहीं कुछ चाहिए / रणजीत साहा / सुभाष मुखोपाध्याय

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उसे चाहिए
एक दोस्त
और
एक दुश्मन
एक अकेले आदमी को चाहिए
बहुत दूर निकल जाने के लिए-
एक पैदल राह।

उसे चाहिए
एक माँ,
एक लम्बी उम्रवाली
ममतामयी माँ।

एक आदमी को चाहिए
सुबह सवेरे कोई एक अख़बार
उसे चाहिए कोई ग्रह
कोई पृथ्वी
महाशून्य तक यात्रा का कोई पथ
और तेज़ गतिवाला कोई स्वप्न।
यह सब ऐसा कुछ ज़्यादा भी नहीं
बल्कि कहना चाहिए
कुछ भी नहीं।

एक अकेले आदमी को ज़्यादा कुछ नहीं चाहिए
उसे चाहिए
सिर्फ़ यह वरदान
कि कोई करता रहेगा उसका इन्तज़ार।