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जा के दिल्ली की गलियों में डर देख लो / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
जा के दिल्ली की गलियों में डर देख लो
मौत का वो भयानक कहर देख लो
हर तरफ़ आग ही आग फैली हुई
उठ रहा जो धुआं इक नज़र देख लो
औरतें और बच्चे भी मारे गए
धड़ कहीं तो कहीं उनके सर देख लो
देश का मेरे सुल्तान बहरा हुआ
चीखता थरथराता शहर देख लो
ऐ ख़ुदा अब तुम्हारा ही बस आसरा
हर तरफ़ नफ़रतों का ज़हर देख लो