भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जिंदगी को सजा नहीं पाया / जगदीश रावतानी आनंदम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ()
 
(कोई अंतर नहीं)

20:16, 26 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

जिंदगी को सजा नहीं पाया
बोझ इसका उठा नहीं पाया

खूब चश्मे बदल के देख लिए
तीरगी को हटा नहीं पाया

प्यार का मैं सबूत क्या देता
चीर कर दिल दिखा नहीं पाया

जो थका ही नही सज़ा देते
वो खता क्यों बता नहीं पाया

वो जो बिखरा है तिनके की सूरत
बोझ अपना उठा नहीं पाया

आईने में खुदा को देखा जब
ख़ुद से उसको जुदा नहीं पाया

नाम "जगदीश" है कहा उसने
और कुछ भी बता नहीं पाया