भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जियरा म आवा थै घुंघुटवा उघारी / जगदीश पीयूष

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:51, 28 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश पीयूष |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जियरा म आवा थै घुंघुटवा उघारी।
पनवा खवाई तोर गलवा निहारी॥
पिंजरा म सुगना फँसाव मैना।
तनी जियरा कै अगिया बुताव मैना॥

तोहका बोलावा थै फुलान अरहरिया।
पियरा कै खेतवा कोहान दुपहरिया॥
लाल लाल एडरी देखाव मैना।
तनी जियरा...

लुका छिपी खेली चला नदिया किनारे।
मछरी क मन भवा कटिया सहारे॥
अंगुरी से अंगुरी छुवाव मैना।
तनी जियरा...

निंदिया न आवे मुला आवा थै सपनवा।
पतरी कमरिया औ बड़रे नयनवा॥
अंजुरी से पनिया पियाव मैना।
तनी जियरा...