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"जिसे देश से प्यार नहीं हैं / श्रीकृष्ण सरल" के अवतरणों में अंतर
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जीने को तो पशु भी जीते | जीने को तो पशु भी जीते | ||
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अपना पेट भरा करते हैं | अपना पेट भरा करते हैं | ||
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कुछ दिन इस दुनिया में रह कर | कुछ दिन इस दुनिया में रह कर | ||
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वे अन्तत: मरा करते हैं। | वे अन्तत: मरा करते हैं। | ||
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ऐसे जीवन और मरण को, | ऐसे जीवन और मरण को, | ||
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मानव वह है स्वयं जिए जो | मानव वह है स्वयं जिए जो | ||
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और दूसरों को जीने दे, | और दूसरों को जीने दे, | ||
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जीवन-रस जो खुद पीता वह | जीवन-रस जो खुद पीता वह | ||
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उसे दूसरों को पीने दे। | उसे दूसरों को पीने दे। | ||
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साथ नहीं दे जो औरों का | साथ नहीं दे जो औरों का | ||
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साँसें गिनने को आगे भी | साँसें गिनने को आगे भी | ||
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साँसों का उपयोग करो कुछ | साँसों का उपयोग करो कुछ | ||
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काम आ सके जो समाज के | काम आ सके जो समाज के | ||
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तुम ऐसा उद्योग करो कुछ। | तुम ऐसा उद्योग करो कुछ। | ||
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क्या उसको सरिता कह सकते | क्या उसको सरिता कह सकते | ||
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09:24, 2 सितम्बर 2013 का अवतरण
जिसे देश से प्यार नहीं हैं
जीने का अधिकार नहीं हैं।
जीने को तो पशु भी जीते
अपना पेट भरा करते हैं
कुछ दिन इस दुनिया में रह कर
वे अन्तत: मरा करते हैं।
ऐसे जीवन और मरण को,
होता यह संसार नहीं है
जीने का अथिकार नहीं हैं।
मानव वह है स्वयं जिए जो
और दूसरों को जीने दे,
जीवन-रस जो खुद पीता वह
उसे दूसरों को पीने दे।
साथ नहीं दे जो औरों का
क्या वह जीवन भार नहीं है?
जीने का अधिकार नहीं हैं।
साँसें गिनने को आगे भी
साँसों का उपयोग करो कुछ
काम आ सके जो समाज के
तुम ऐसा उद्योग करो कुछ।
क्या उसको सरिता कह सकते
जिसम़ें बहती धार नहीं है?
जीने का अधिकार नहीं हैं।