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जिस्म सन्दल, मिज़ाज फूलों का.. / श्रद्धा जैन

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ज़िस्म सन्दल, मिज़ाज फूलों का
हमने देखा है, ताज फूलों का

किसकी ख़ुशबू है, किसकी यादें हैं
मेरे घर में है, राज फूलों का

आप पत्थर ही पूजिए लेकिन
सुन तो लें एहतिजाज<ref>विरोध</ref> फूलों का

इनको पानी की चार बूंद बहुत
आग से क्या इलाज फूलों का

हिन्दू-मुस्लिम बने फ़क़त इंसान
फिर बनेगा समाज फूलों का

सब्र जो है यतीम बच्चों को
बस यही है अनाज फूलों का

पत्थरों पर भी चढ़ गए ‘श्रद्धा’
हाँ यही है रिवाज फूलों का

शब्दार्थ
<references/>