भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जीते जी ये रोज़ का मरना ठीक नहीं / मदन मोहन दानिश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन मोहन दानिश |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> जीते जी ये …)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:22, 19 मार्च 2011 के समय का अवतरण

जीते जी ये रोज़ का मरना ठीक नहीं ।
अपने आप से इतना डरना ठीक नहीं ।

मीठी झील का पानी पीने की ख़ातिर,
उस जंगल से रोज़ गुज़रना ठीक नहीं ।

कुछ मौजों ने मुझको भी पहचान लिया,
अब दरया के पार उतरना ठीक नहीं ।

रात बिखर जाती है दिन की उलझन से,
रात का लेकिन रोज़ बिखरना ठीक नहीं ।

वरना तुझसे दुनिया बच के निकलेगी,
ख़ुद से इतनी बातें करना ठीक नहीं ।

सीधे सच्चे बाशिंदे हैं बस्ती के,
दानिश इन पर जादू करना ठीक नहीं ।