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"जीवन क्या है! / सुरंगमा यादव" के अवतरणों में अंतर

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जीवन क्या है!
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तुम्हारे बिन
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पतझड़ का वृक्ष
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मेरा जीवन।
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आपका आना
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हिलोरें-सी उठना
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शांत नदी में ।
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चाँद लेखनी
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लहरों पर लिखूँ
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प्रेम रागिनी।
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ओ मनमीत !
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बिन कहे कहानी
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तुमने जानी।
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मुकुलित थीं
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तुम्हें देख मन की
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आशाएँ खिलीं।
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खिली पूर्णिमा
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प्रेम दीप के बिना
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उजाला कहाँ?
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रात प्रहरी
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कैसे आऊँ मैं प्रिय ?
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लाँघ देहरी।
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प्रेम आँकना
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शब्दों की तुला पर
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है सहज न !
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तुम्हारा स्पर्श
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सूर्यकांत मणि-सी
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पिघलती मैं ।
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प्रेम तुम्हारा
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लिखता मन पर
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प्रणय ग्रन्थ ।
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'''जीवन क्या है!'''
 
उड़ी, चढ़ी लो कटी
 
उड़ी, चढ़ी लो कटी
 
गिरी पतंग
 
गिरी पतंग
 
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00:22, 19 जनवरी 2021 के समय का अवतरण

23
तुम्हारे बिन
पतझड़ का वृक्ष
मेरा जीवन।
24
आपका आना
हिलोरें-सी उठना
शांत नदी में ।
25
चाँद लेखनी
लहरों पर लिखूँ
प्रेम रागिनी।
26
ओ मनमीत !
बिन कहे कहानी
तुमने जानी।
27
मुकुलित थीं
तुम्हें देख मन की
आशाएँ खिलीं।
28
खिली पूर्णिमा
प्रेम दीप के बिना
उजाला कहाँ?
29
रात प्रहरी
कैसे आऊँ मैं प्रिय ?
लाँघ देहरी।
30
प्रेम आँकना
शब्दों की तुला पर
है सहज न !
31
तुम्हारा स्पर्श
सूर्यकांत मणि-सी
पिघलती मैं ।
32
प्रेम तुम्हारा
लिखता मन पर
प्रणय ग्रन्थ ।
33
जीवन क्या है!
उड़ी, चढ़ी लो कटी
गिरी पतंग