भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन में श्रम करना है / मृदुला झा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:11, 30 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हमको आगे बढ़ना है।
छोड़ पुरानी बातों को,
रोज़ नया कुछ गढ़ना है।
भूली बिसरी यादों में,
रंग नया नित भरना है।
खुशियाँ द्वारे बरसेंगी,
जु़ल्मत से अब लड़ना है।
कल-कल, छल-छल बहता है,
जीवन भी इक झरना है।
कल का खौफ़ करें क्यों हम,
निर्भय होकर चलना है।