भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुलूसक पछुआ / राजदेव मण्डल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:59, 27 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजदेव मण्डल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हजारक-हजार टांग-हाथ
किन्तु एकेटा अछि माथ
ठमकैत आ बमकैत बढ़ि रहल अछि आब
गरजैत सड़कपर इनिकलाब
नै अछि कान-आँखि
तैयो लगल अछि जेना पाँखि
एकगोटे केलक बकटेटी
अखैन केना सुनत अपन हेठी
केना सुनतै एखन गारि बात
जखैन छै हजार साथ
पकिड़ ओकर तोिड़ देलक गात
तोड़ए लगल तान
कंठ मोंकि लऽ लेलक प्राण
बढ़ि गेल सभ आगाँ
जेना लगल हो धागा
नै छै पता आगू की भेल बात
पाछूसँ सभ देने संग साथ
लहाशकेँ फेंकि देलक बाटक कात
हम तँ खिरदुआ अंग
मात्र चलैक छै संग-संग
बनल छी पिछला हिस्सा
चलि रहल छै आपसी खिस्सा
ओकर कुकृत्यकेँ हम जानि रहल छी
नचार भऽ मने-मन कानि रहल छी
बिना जिरमाना केना भेटत माफी
भीड़क अंग छी तँए हमहूँ पापी।