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"झगड़ा किया था जिसने कल रात ज़िन्दगी से / ज्ञान प्रकाश विवेक" के अवतरणों में अंतर

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झगड़ा किया था जिसने कल रात ज़िन्दगी से
 
झगड़ा किया था जिसने कल रात ज़िन्दगी से
अब बोलता नहीं है वो आदमी किसी से
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अब बोलता नहीं है वो आदमी किसी से
  
पाबंदियाँ लगा कर तुम बीन पर ये सोचो
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क्या वश में कर सकोगे विषधर को बाँसुरी से
 
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सागर के पाँव में जो हो जाती है समर्पित
 
सागर के पाँव में जो हो जाती है समर्पित
ये भाव बन्दगी के सीखेंगे हम नदी से
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रखते हैं चाँदनी के वो हाथ पर अंगारे
 
रखते हैं चाँदनी के वो हाथ पर अंगारे
 
जबसे हुए हैं उनके सम्बन्ध तीरगी से
 
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ये धूप की चटाई बैठा हुआ हूँ जिसपर
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ये धूप की चटाई बैठा हुआ हूँ जिसपर
 
तुमको बिछानी हो तो ले जाइये ख़ुशी से.
 
तुमको बिछानी हो तो ले जाइये ख़ुशी से.
 
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19:36, 11 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

झगड़ा किया था जिसने कल रात ज़िन्दगी से
अब बोलता नहीं है वो आदमी किसी से

पाबंदियाँ लगा कर तुम बीन पर ये सोचो
क्या वश में कर सकोगे विषधर को बाँसुरी से

सागर के पाँव में जो हो जाती है समर्पित
ये भाव बन्दगी के सीखेंगे हम नदी से

रखते हैं चाँदनी के वो हाथ पर अंगारे
जबसे हुए हैं उनके सम्बन्ध तीरगी से

ये धूप की चटाई बैठा हुआ हूँ जिसपर
तुमको बिछानी हो तो ले जाइये ख़ुशी से.