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"झलक भी प्यार की कुछ उसमें मिल गयी होती / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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कहाँ से आती ये रंगत तुम्हारी सूरत पर
 
कहाँ से आती ये रंगत तुम्हारी सूरत पर
नहीं किसी की जो आंखों में रह गयी होती     
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नहीं किसीकी जो आंखों में रह गयी होती     
 
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01:37, 25 जून 2011 का अवतरण


झलक भी प्यार की कुछ उसमें मिल गयी होती
हमारी जांच जो दिल की नज़र से की गयी होती

हमारे मन की उमंगों से खेलनेवाले
हमारे प्यार की तड़पन भी देख ली होती!

गए तो छोड़ के दुनिया की आँधियों में हमें
कभी तो धूल भी आँचल से पोंछ दी होती

वो एक बात जो दम भर में चलते वक्त हुई
वो एक बात तो पहले भी हो गयी होती!

कहाँ से आती ये रंगत तुम्हारी सूरत पर
नहीं किसीकी जो आंखों में रह गयी होती