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"झलक भी प्यार की कुछ उसमें मिल गयी होती / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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हमारे मन की उमंगों से खेलनेवाले | हमारे मन की उमंगों से खेलनेवाले |
01:05, 8 जुलाई 2011 का अवतरण
झलक भी प्यार की कुछ उसमें मिल गयी होती
हमारी जाँच जो दिल की नज़र से की होती
हमारे मन की उमंगों से खेलनेवाले
हमारे प्यार की तड़पन भी देख ली होती!
गए तो छोड़ के दुनिया की आँधियों में हमें
कभी तो धूल भी आँचल से पोंछ दी होती
वो एक बात जो दम भर में चलते वक्त हुई
वो एक बात तो पहले भी हो गयी होती!
कहाँ से आती ये रंगत तुम्हारी सूरत पर
नहीं किसीकी जो आँखों में रह गयी होती