भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टी टी करती टिटही आई / मधुसूदन साहा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:45, 15 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुसूदन साहा |अनुवादक= |संग्रह=ऋष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रंग बिरंगी
बड़ी तरंगी
टी-टी करती टिटरी आई।

कितने सुंदर पंख सुनहरे
लाल रंग हैं गहरे-गहरे
चोंच नुकीली
पूंछ सजीली
लगती बिल्कुल रंग नहायी।

कभी उतरकर नीचे आती
कभी फुदक कर ऊपर जाती
कभी यहाँ पर
कभी वहाँ पर
फिरती जैसे हो बौराई।

जोर-जोर आवाज लगाती
जाने किसको रोज बुलाती
इधर ताकती
उधर झाँकती
लगती है कितनी घबराई।