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"टूटे हुए क्रेयॉन / गीता शर्मा बित्थारिया" के अवतरणों में अंतर

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21:57, 6 जुलाई 2021 के समय का अवतरण

मुझे
देखती हैं कुछ आँखें
विस्मय का भाव लिए
आंखों को चौड़ा करके
टकटकी लगा लगातार
घूर घूरकर सशंकित सी
देखती हैं ऐसे
जैसे किसी दूसरे ग्रह से
आया कोई एलियन हूँ मैं

हां मैं वैसा नहीं हूँ
जैसे तुम हो
पूरे के पूरे
सिर से पाँव तक
कोई कमी नहीं है
तुम्हारे शरीर के
किसी अंग में
सिवाय तुम्हारी
अपंग सोच के
जो टपक रही है तुम्हारी
हीनता से भरी हुई
मुझे घूरती आंखों से

तो मैं बता दूँ तुम्हें कि
अपनी इस अपूर्णता में भी
एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व हूँ मैं
क्योंकि
मैं कहीं भी
किसी में भी
हीनता नहीं पाता
मैं खोज ही लेता हूँ
हर किसी में अंतर्निहित महानता

पता है
मुझे टूटे हुए क्रेयॉन
बहुत भाते हैं
क्योंकि
टूट गए हैं लेकिन
रंगहीन कैनवास को
रंगों से भरने का जिद रखते हैं
टूटे हुए क्रेयॉन से
नभ पर उकेरा
सतरंगी इन्द्रधनुष का अनुपम सौंदर्य
प्रमाण है कि
किसी अंग का टूटना
इरादों का टूटना नहीं होता

हाँ
मैं एक क्रेयॉन हूँ
रंगों और सपनों से
लबालब भरी हुई हैं
मेरी चमकीली आंखें
किसी आकाश गंगा-सी
तुम अपने हृदय को तनिक विस्तार दो
शायद उतर आए कोई
शापमोचिनी गंगा
तुम्हारे हृदय की
संवेदनाओं को
आप्लावित करती हुई

फिर
तुम्हारी आँखों से भी
बह निकलेगी
ऐसी ही दूधिया रोशनी
जो दुनिया को प्रकाश से भर देगी
तिमिर तिरोहित होते ही
तुम देख पाओगे
तुम्हारे और मेरे बीच पनपे
प्यार और सम्मान को
टूटे क्रेयॉन से बने
इंद्रधनुष पर
झूला झूलते
हँसते मुस्कुराते
खिलखिलाते