भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ठंड लग रही है मुझे / ओसिप मंदेलश्ताम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=ओसिप मंदेलश्ताम |संग्रह=तेरे क़दमों का संगीत / ओसिप ...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
[[Category:रूसी भाषा]] | [[Category:रूसी भाषा]] | ||
− | + | {{KKAnthologySardi}} | |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
ठंड लग | ठंड लग | ||
01:14, 1 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
|
ठंड लग
रही है मुझे
वसन्त पारदर्शी है
पित्रोपोल पहन रहा है
रोंएदार हरे वस्त्र
छत्रिक-माछ-सी फिसल रही हैं
निवा नदी की लहरें
धीरे-धीरे
घेर रही हैं मेरे मन को
नदी के उस तट पर
प्रकाश छलकाती दौड़ रही हैं मोटरें
जैसे उड़ रहे हों
लौह-गुबरैले और पतंगे
आकाश में
स्वर्ण-बकसुए से
झिलमिला रहे हैं सितारे
पर कैसे भी वे
ख़त्म नहीं कर पाएंगे
मरकत से भारी
इस मरकती समुद्री जल को
पित्रोपोल=लेनिनग्राद, पितेरर्बुर्ग या पीटर्सबर्ग नगर का एक साहित्यिक नाम ।
(रचनाकाल : 1916)