भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डेग डेग पर काँटा छै / नंदकिशोर शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:46, 2 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

बरिया के डंका बाजै छै, निमला के घर सन्नाटा छै
रे नूँनूँ चलिहैं देख तनी, अब डेग-डेग पर काँटा छै।

ऊपर देखीं सीधा-सादा भीतर सैं घुरची छप्पन छै
जे हैंस-हैंस कै बात करै, नै कहिहैं ओकरा अप्पन छै
छै ‘हों में हों’ में नफा बहुत, सब शेष बात में घाटा छै
रे नूँनूँ चलिहैं देख तनी, अब डेग-डेग पर काँटा छै।

रे वहलै चौतरफा बियार, बैमानी मिल्लै हाबा में
हर चील मिलै छै मंहगा अब, बस खून मिलै छै फाबा में
तोरा सन अदलहवा गरीब तें लोर करैने साटा छै।
रे नूँनूँ चलिहैं देख तनी, अब डेग-डेग पर काँटा छै।

रंगबाज चोर चंदन घसने जे गेलै केदार देखावै लै
भगवान के ऊ देलकै नौता भीषण भूचाल मचावै लै
हरकंप मचल केदारनाथ, नेताजी के खर्राटा छै
रे नूँनूँ चलिहैं देख तनी, अब डेग-डेग पर काँटा छै।

अब धर्म नाम पर चंदा के कुछ धंधा जोर पकड़ने छै
भगवान सें की डरतै जेकड़ा चौतरफा पाप जकड़ने छै
दाढ़ी माला मुख राम-राम लेनै बस सैर सपाटा छै
रे नूँनूँ चलिहैं देख तनी, अब डेग-डेग पर काँटा छै।

रे नूँनूँ समटें विस्तर अब उठ चलैं कि रात अन्हरिया छौ
उपरे उपरे जहाज उरौ तोहर तैं थरिया खाली छौ
ने नूँनूँ शायद, वक्त आब खेलै जूरो कर्राटा छै
रे नूँनूँ चलिहैं देख तनी, अब डेग-डेग पर काँटा छै।