भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी / सुदर्शन फ़ाकिर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:20, 7 मई 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी
ला पिला दे शराब ऐ साक़ी

या सुराही लगा मेरे मुँह से
या उलट दे नक़ाब ऐ साक़ी

मैकदा छोड़ कर कहाँ जाऊँ
है ज़माना ख़राब ऐ साक़ी

जाम भर दे गुनाहगारों के
ये भी है इक सवाब ऐ साक़ी

आज पीने दे और पीने दे
कल करेंगे हिसाब ऐ साक़ी