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"तर्क जब से जवाँ हो गए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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सूर्य खोजा किए रात भर, | सूर्य खोजा किए रात भर, | ||
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अंत में खुद पे वो, रो, गए। | अंत में खुद पे वो, रो, गए। | ||
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10:17, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
तर्क जबसे जवाँ हो गए।
भाव जाने कहाँ खो गए।
कौन दे रोज़ तुलसी को जल,
इसलिए कैक्टस बो गए।
ड्राइ क्लीनिंग के इस दौर में,
अश्क से हम हृदय धो गए।
सूर्य खोजा किए रात भर,
हार कर भोर में सो गए।
जो सभी पर हँसे उम्र भर,
अंत में खुद पे वो, रो, गए।