भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ताकता है पहाड़ / संजीव बख़्शी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:55, 13 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= संजीव बख़्शी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> हवा का संगीतमय …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हवा का
संगीतमय हो जाना
पत्तियों का
चिडियों के साथ
चहचहाना
पेड़ पौधों का
फल-फूल के साथ हर्षाना
नदियों की झर-झर
शाम को समुद्र का
चुप-सा हो जाना
यह सब
आकार देता हुआ लगता है
प्रकृति की बोल को
पर पता नहीं क्यों
पहाड़ हमेशा पीठ किए लगता है
मेरी खुदगर्ज़ का बोल
कहता है
की ताकता है पहाड़
मेरे दुश्मनों को