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तिहारे हिय हरि! कहा ठई / स्वामी सनातनदेव

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राग खमाज, तीन ताल 29.9.1974

तिहारे हिय हरि! कहा ठई?
नेह लगाय न नैंकु निभायो, फिर सुधि नाहि लई॥
अब तो तरसत ही दिन बीतहिं, बैरिन वयस भई।
कैसे सहों रहों अब कैसे, आशा सबहि ढई॥1॥
बिलपन ही बिलपन बाकी है, चितकी चैन गई।
नैनन में नहिं नींद रैनमें, कलपन होहिं नई॥2॥
लागत प्रीति ईति-सी प्यारे! अति अनरीति भई।
अपनो ही अपनाय भुलावै तो का रति निभई॥3॥
चित तो लियो न दियो चैन फिर, यह का कियो दई।
कुछ तो नीति निभाओ प्यारे! अब बहु बेर भई॥4॥
दरस देहु, सुधि लेहु साँवरे! जिय जनु जरनि जईं।
एक बार मिलि जीय जुड़ावहु, जो कछु गई, गई॥5॥