"तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात बेतरह / सौदा" के अवतरणों में अंतर
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− | + | तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात<ref>समय | |
− | तुझ बिन बहुत ही कटती है | + | </ref> बेतरह |
जूँ-तूँ के दिन तो गुज़रे है, पर रात बेतरह | जूँ-तूँ के दिन तो गुज़रे है, पर रात बेतरह | ||
− | होती है एक तरह से हर काम की | + | होती है एक तरह से हर काम की जज़ा<ref>पुरस्कार |
− | आमाले-इश्क़ | + | </ref> |
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बुलबुल, कर इस चमन में समझकर टुक आशियाँ | बुलबुल, कर इस चमन में समझकर टुक आशियाँ | ||
− | + | सैयाद<ref>बहेलिया</ref> लग रहा है तिरी घात बेतरह | |
− | पूछा | + | पूछा पयामबर<ref>संदेशवाहक</ref> से जो मैं यार का जवाब |
कहने लगा ख़मोश कि है बात बेतरह | कहने लगा ख़मोश कि है बात बेतरह | ||
मिलने न देगा हमसे तुझे एक दम रक़ीब | मिलने न देगा हमसे तुझे एक दम रक़ीब | ||
− | पीछे लगा फिरे | + | पीछे लगा फिरे है वो बद्ज़ात की तरह |
− | कोई ही | + | कोई ही मू<ref>बाल |
− | दाढ़ी पड़ी है | + | </ref> रहे तो रहे इसमें शैख़ जी |
+ | दाढ़ी पड़ी है शाना<ref> काँधे</ref> के अब हाथ बेतरह | ||
'सौदा' न मिल, कर अपनी तू अब ज़िन्दगी पे रहम | 'सौदा' न मिल, कर अपनी तू अब ज़िन्दगी पे रहम | ||
− | है उस जवाँ की तर्ज़े- | + | है उस जवाँ की तर्ज़े-मुलाक़ात<ref>मुलाक़ात का ढंग</ref> बेतरह |
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12:04, 15 मई 2009 के समय का अवतरण
तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात<ref>समय
</ref> बेतरह
जूँ-तूँ के दिन तो गुज़रे है, पर रात बेतरह
होती है एक तरह से हर काम की जज़ा<ref>पुरस्कार
</ref>
आमाले-इश्क़<ref>. प्रेम के कर्मों की</ref> की है मकाफ़ात<ref>बदला(सज़ा)</ref> बेतरह
बुलबुल, कर इस चमन में समझकर टुक आशियाँ
सैयाद<ref>बहेलिया</ref> लग रहा है तिरी घात बेतरह
पूछा पयामबर<ref>संदेशवाहक</ref> से जो मैं यार का जवाब
कहने लगा ख़मोश कि है बात बेतरह
मिलने न देगा हमसे तुझे एक दम रक़ीब
पीछे लगा फिरे है वो बद्ज़ात की तरह
कोई ही मू<ref>बाल
</ref> रहे तो रहे इसमें शैख़ जी
दाढ़ी पड़ी है शाना<ref> काँधे</ref> के अब हाथ बेतरह
'सौदा' न मिल, कर अपनी तू अब ज़िन्दगी पे रहम
है उस जवाँ की तर्ज़े-मुलाक़ात<ref>मुलाक़ात का ढंग</ref> बेतरह