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तुमको केवल हँस लेने का चाव है / कृष्ण मुरारी पहारिया
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तुमको केवल हँस लेने का चाव है
तुम क्या समझोगे, कैसा यह घाव है?
जाने कितनी गाढ़ी-गाढ़ी वेदना
पी लेने पर आता है ऐसा नशा
कवि अपने अन्तर की आँखें खोलकर
गाता है गीतों में युग-युग की दशा
कहते हो कविता तो मन बहलाव है
क्षण-दो क्षण की ओछी-टुच्ची साधना
करके कोई होता, बोलो सिद्ध कब
ऐसा भी दिन आ जाता है हार का
ढहता है तन होकर श्रम से वृद्ध जब
यह तो सारे जीवन का भटकाव है
06.06.1962