भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारा यूँ सोचना / नेहा नरुका

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:54, 23 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नेहा नरुका |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारा यूँ बैठना

तुम्हारा यूँ सोचना

भाता है मुझे

याद आता है मुझे

हर एक
वह पल

जिसे मैं बचाकर रखना चाहती हूँ
अपने भीतर