भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारा शब्द-कोश / प्रणय प्रियंवद

Kavita Kosh से
योगेंद्र कृष्णा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:15, 14 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रणय प्रियंवद |संग्रह= }} <poem> तुम एकाएक मुस्कुरा …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम एकाएक मुस्कुरा उठते
मारने लगते किलकारियाँ
तुम एकाएक रोने लगते, तब
माँ समझ जाती कि तुम
भूखे हो।
जब तुम और छिटे थे
तब एक ही जगह लगाते
टकटकी
अब तुम आँखें घुमाते हो
पहचानते हो आवाज़
करवट बदलना चाहते हो।
अब तुम रोते हो तो
मैं समझ जाता हूँ
तुम्हें चाहिए और प्यार
अब तुम्हें बहुत सोना पसंद नहीं
तुम्हें गोद पसंद है।