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तुम्हारी मुहब्बत है या / अमरजीत कौंके

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तुम्हारी मुहब्बत है
या आँधी है कोई मुँहज़ोर
जो पाँवों से उखाड़ कर ले गई मुझे
अपनी बाँहों में समेट कर

तुम्हारी मोहब्बत है
या तूफ़ान है कोई समुद्री
मुझे लहरों पर डूबते तैरते को
बहा के ले गया साथ अपने

तुम्हारी मुहब्बत है
या भँवर है तेज़ कोई
मेरी चेतना इस के भँवरजाल में
अपने होशहवास गुम कर बैठी है

तुम्हारी मुहब्बत है
या घोड़े हैं कई बेलगाम
जो मेरे भीतर दौड़ने लगे हैं
गरजते तूफ़ान की तरह

तुम्हारी मोहब्बत है
या अग्नि है कोई धू धू जलती
मेरी काया जिस में तप रही
मैं राख होता जा रहा हूँ
पिफर से कुकनूस होने के लिये।