भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारे दर पे जब भी सर झुका है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:44, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=एहस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुम्हारे दर पे जब भी सिर झुका है
अजब सा चैन इस दिल को मिला है
यहाँ जो जी रहे मुँह पेट बाँधे
उन्हीं पर तो जमाना ये टिका है
हकीकत को किया मंजूर जब भी
ज़माने में बड़ा चर्चा हुआ है
उठी हैं उंगलियां हरदम उसी पर
किसी ने काम जब अच्छा किया है
कहा ना और फिर हँसने लगा वो
अजब इक़रार की उसकी अदा है
दिखे ग़र मोड़ तो घबरा न जाना
कि उसके बाद भी एक रास्ता है
डुबो सकती नहीं मझधार उसको
नदी में साथ जिसके नाखुदा है