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"तुम तजि और कौन पै जाऊं / भजन" के अवतरणों में अंतर
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कीजै कृपा सुमिरि अपनो पन सूरदास बलि जाऊं ॥ | कीजै कृपा सुमिरि अपनो पन सूरदास बलि जाऊं ॥ | ||
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20:07, 17 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण
तुम तजि और कौन पै जाऊं ।
काके द्वार जाइ सिर नाऊं पर हाथ कहां बिकाऊं ॥
ऐसो को दाता है समरथ जाके दिये अघाऊं ।
अंतकाल तुम्हरो सुमिरन गति अनत कहूं नहिं पाऊं ॥
रंक अयाची कियू सुदामा दियो अभय पद ठाऊं ।
कामधेनु चिंतामणि दीन्हो कलप वृक्ष तर छाऊं ॥
भवसमुद्र अति देख भयानक मन में अधिक डराऊं ।
कीजै कृपा सुमिरि अपनो पन सूरदास बलि जाऊं ॥