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तुम याद मुझे आ जाते हो / बेहज़ाद लखनवी

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तुम याद मुझे आ जाते हो
जब सेहन-ए-चमन में कलियाँ खिल कर फूल की सूरत होती हैं
और अपनी महक से हर दिल में इक तुख़्म-ए-लताफ़त बोती हैं
तुम याद मुझे आ जाते हो

तुम याद मुझे आ जाते हो
जब बरखा की रुत आती है जब काली घटाएँ उठती हैं
जिस वक़्त कि रिन्दों के दिल से हू-हक़ की सदाएँ उठती हैं
तुम याद मुझे आ जाते हो

तुम याद मुझे आ जाते हो
जब मेंह की फुवारें पड़ती हैं जब ठण्डी हवाएँ आती हैं
जब सेहन-ए-चमन से घबरा कर पी-पी की सदाएँ आती हैं
तुम याद मुझे आ जाते हो

तुम याद मुझे आ जाते हो
जब चौदहवीं शब का चाँद निकल कर दहर मुनव्वर करता है
जब कोई मोहब्बत का मारा कुछ ठण्डी साँसें भरता है
तुम याद मुझे आ जाते हो

तुम याद मुझे आ जाते हो
जब रात की ज़ुल्मत घटती है जब सुब्ह का नूर उभरता है
जब कोयल कूकू करती है जब पंछी पी-पी करता है
तुम याद मुझे आ जाते हो

तुम याद मुझे आ जाते हो
जब कोई किसी का हाथ पकड़ कर सैर को बाहर जाता है
जब कोई निगाह-ए-शौक़ के आगे रह-रह कर घबराता है
तुम याद मुझे आ जाते हो

तुम याद मुझे आ जाते हो
जब चार निगाहें कर के कोई महव-ए-तबस्सुम होता है
जब कोई मोहब्बत का मारा उस कैफ़ में पड़ कर खोता है
तुम याद मुझे आ जाते हो

तुम याद मुझे आ जाते हो
अफ़्लाक पे जब ये लाखों तारे जगमग जगमग करती हैं
जब तारे गिन गिन कर दिल वाले ठण्डी साँसें भरते हैं
तुम याद मुझे आ जाते हो

तुम याद मुझे आ जाते हो
जब रात का बढ़ता है सन्नाटा चैन से दुनिया सोती है
तब आँख मिरी खुल जाती है और दिल की रग रग रोती है
तुम याद मुझे आ जाते हो

तुम याद मुझे आ जाते हो
जब रोता है बहज़ाद-ए-'हज़ीं' वो शाइ'र वो दीवाना-सा
वो दिल वाला वो सौदाई वो दुनिया से बेगाना-सा
तुम याद मुझे आ जाते हो

तुम याद मुझे आ जाते हो