भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम समझ पाओगे मुझे / विश्वासी एक्का

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन का सूना आँगन
मुरझाए पत्तों का राग
हरसिंगार की उदासी
हवाओं का रूखापन
न बरसने का मन बनाए
बादलों का हठ ।

धूल भरी तेज़ हवाओं का हुल्लड़
चिन्दी-चिन्दी बिखरता स्त्री का मन
पूरी रात जागते हुए
चाँद का सफ़र
शोर मचाते हुए
झींगुरों की चांय-चांय

या रात का
दिन से चिरन्तन वियोग
तुम समझ पाओगे ?

यदि मैं लिखूँ
शब्दहीन कविता
या कोई अबूझ कहानी ।