"तू ज़िन्दा है तू ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("तू ज़िन्दा है तू ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर / शैलेन्द्र" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर, | तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर, | ||
− | अगर कहीं है | + | अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर! |
सुबह औ' शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर, | सुबह औ' शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर, | ||
तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूमकर, | तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूमकर, | ||
तू आ मेरा सिंगार कर, तू आ मुझे हसीन कर! | तू आ मेरा सिंगार कर, तू आ मुझे हसीन कर! | ||
− | अगर कहीं है | + | अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है |
ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन, | ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन, | ||
ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन, | ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन, | ||
कभी तो होगी इस चमन पर भी बहार की नज़र! | कभी तो होगी इस चमन पर भी बहार की नज़र! | ||
− | अगर कहीं है | + | अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है |
हमारे कारवां का मंज़िलों को इन्तज़ार है, | हमारे कारवां का मंज़िलों को इन्तज़ार है, | ||
यह आंधियों, ये बिजलियों की, पीठ पर सवार है, | यह आंधियों, ये बिजलियों की, पीठ पर सवार है, | ||
जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर | जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर | ||
− | अगर कहीं है | + | अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है |
हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर | हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर | ||
मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर | मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर | ||
नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमर | नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमर | ||
− | अगर कहीं है | + | अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है |
ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले, | ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले, | ||
टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये, | टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये, | ||
मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम, | मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम, | ||
− | अगर कहीं है | + | अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है |
बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये, | बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये, | ||
न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये, | न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये, | ||
गिरेंगे जुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर! | गिरेंगे जुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर! | ||
− | अगर कहीं है | + | अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है |
'''1950 में रचित''' | '''1950 में रचित''' | ||
</poem> | </poem> |
14:13, 20 अगस्त 2018 के समय का अवतरण
तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर,
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!
सुबह औ' शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर,
तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूमकर,
तू आ मेरा सिंगार कर, तू आ मुझे हसीन कर!
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,
ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन,
कभी तो होगी इस चमन पर भी बहार की नज़र!
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
हमारे कारवां का मंज़िलों को इन्तज़ार है,
यह आंधियों, ये बिजलियों की, पीठ पर सवार है,
जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर
मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर
नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले,
टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये,
मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम,
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये,
न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये,
गिरेंगे जुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर!
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
1950 में रचित