भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तू ने कुछ भी न कहा हो जैसे / सूफ़ी तबस्सुम
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:35, 26 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूफ़ी तबस्सुम |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <po...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तू ने कुछ भी न कहा हो जैसे
मेरे ही दिल की सदा हो जैसे
यूँ तिरी याद से जी घबराया
तू मुझे भूल गया हो जैसे
इस तरह तुझ से किए हैं शिकवे
मुझ को अपने से गिला हो जैसे
यूँ हर इक नक़्श पे झुकती है जबीं
तेरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा हो जैसे
तेरे होंटों की ख़फ़ी सी लर्ज़िश
इक हसीं शेर हुआ हो जैसे